ज्योतिष में सूर्य और चन्द्रमा प्रकाशक ग्रह कहलाते हैं। वास्वत में सूर्य तो नक्षत्र हैं और चन्द्रमा उपग्रह। परन्तु भविष्य कथन के दृष्टिकोण से इन्हें नौ ग्रहों में शामिल कर लिया गया है।
यह दोनों ही मानव जीवन को सीधे ही प्रभावित करते हैं। इसलिए सबसे ज्यादा असर भी इन्हीं का होता है। चन्द्रमा तो पृथ्वी के सबसे नजदीक हैं इसलिए उसका दैनिक जीवन पर भी असर बहुत ज्यादा है। सोचिए जो चन्द्रमा अपने आकर्षण बल से समुद्र के जल को ज्वार भाटे के समय कई फीट ऊँचा उठा देता है वह मनुष्य के शरीर में स्थिति 4-5 लीटर जल को क्यों नहीं प्रभावित करेगा। मनुष्य की समस्त मानसिक शक्तियों पर चन्द्रमा का नियंत्रण है। प्रेम, भावनाएँ, भोग की इच्छा, कामनाएँ, मित्रता, शत्रुता के भाव, लालित्य, चित्रकला, कल्पना व राग-रंग जैसे विषयों पर चन्द्रमा का नियंत्रण है। सूर्य जहाँ आत्मपक्ष के प्रवक्ता हैं और संसार से मुक्ति, वैराग्य, आत्मिक उन्नति जैसे विषयों पर नियंत्रण रखते हैं, चन्द्रमा कर्मभोग और पुनर्जन्म जैसे विषयों पर नियंत्रण रखते हैं। चन्द्रमा के अदृश्य भाग में पितृ लोक है, जहाँ अधिकांश मुक्त प्राण वास करते हैं और पुनर्जन्म पाते हैं। परन्तु मुक्त प्राण अपने कर्मक्षय के बल पर यदि सूर्य लोक को पार कर जाएं तो पुनर्जन्म होना रुक जाता है। परन्तु इसके लिए सभी अच्छे बुरे कर्मों का नाश करना आवश्यक है।
सूर्य और चन्द्रमा की परस्पर गतियों के आधार पर ही पंचाङ्ग का निर्माण होता है। पंचाङ्ग का अर्थ है तिथि, वार, नक्षत्र, योग और कर्ण। भारतीय काल गणना का यह प्रमुख विषय है।