आप जब भी पूजा करें उत्तर दिशा में मुंह करके पूजा ऽरना ज्यादा शुभ फल देता है। मूर्ति का या तस्वीर का मुंह किधर भी हो, आप स्वयं उत्तरमुखी बैठें। यदि यह संभव नहीं है तो पूर्वमुखी होकर बैठें।
जब पूजन के लिए स्थान नहीं बना पाएं तो घर के बाहर ईशान कोण में तुलसी का गमला लगाएं। जब तुलसी का गमला लगाएं तो उसमें शालिग्राम पत्थर भी अवश्य रखें।
एक घर में दो शालिग्राम नहीं होने चाहिएं। दो से अधिक गणेशजी नहीं होने चाहिएं। दो से अधिक पूजन घर भी नहीं होने चाहिएं। एक द्वार गणपति और दूसरे ईशान कोण में स्थापित देवता ही अच्छे हैं।
भूखण्ड के उत्तर दिशा में पानी का भूमिगत जलाशय बनाना तुरन्त धनलाभ कराता है। जलाशय ईशान कोण में भी अच्छा होता है परन्तु उसके फल आने में थोड़ा समय लगता है।
मुख्य दरवाजे के बाहर गली में कीचड़, नाली, अग्नि, खम्भा, मंदिर व अशुभ वस्तुओं की स्थापना नहीं होनी चाहिए।
शरद पूर्णिमा को खीर बनाकर चांद की रोशनी में ठंडी करने के बाद ठीक अर्द्धरात्रि में चन्द्र दर्शन और पूजा करके उसी समय प्रसाद ग्रहण करें। जब प्रसाद ग्रहण करें तो उत्तर की ओर मुंह खड़ा करें इसके बाद सबका अभिवादन करते हुए प्रसाद ग्रहण करें।