राहु-केतु अक्ष पर सम्मिलित ग्रहों का प्रभाव।

यद्यपि संहिता काल से लेकर अठाहरवीं शताब्दी तक कुछ न कुछ परिष्कार और परिवर्धन जारी रहा। पर आज वह प्रक्रिया कुछ बाधित हो गयी है। तीव्र अनुभूति और शोध दृष्टि के बिना यह दुष्कर कार्य असम्भव है। डुबकी लगाए बिना गहरे पानी मे मोती नहीं मिलते। ज्योतिष के अथाह सागर में विकीर्ण रत्नों की खोज में मेरा यह शोध परक छोटा सा प्रयास है।
विषय पर आने से पहले मैं ज्योतिष में अनास्था और नास्तिक दृष्टिकोण रखने वालों को यह बताना चाहता हूं कि ज्योतिष शास्त्र चमत्कार शास्त्र नहीं है। टोने-टोटके से अलग प्रायोगिक विज्ञान है। इसके कुछ तथ्य यदि प्रतिकूल फलदाई होते हैं तो उसके कारणों का परीक्षण भी आवश्यक है। वराहमिहिर ने एक जगह लिखा है कि बिना इष्ट के सब व्यर्थ है। प्रयोगधर्मा गुण और अंतज्र्ञान से युक्त दार्शनिक दृष्टि के बिना सब विधाएं अपूर्ण हैं।
मैं ग्रहों की 7 विशेष और सरल समझ मे आने वाली स्थितियों को लिख रहा हूँ। जिनसे भावी बड़ी घटनाओं की पृष्ठभूमि तैयार हुई। जिसका प्रभाव उस दिन नहीं, अपितु ग्रह स्थिति के कुछ माह बाद हुआ।12 जनवरी, 1945, धनु राशि में सूर्य ,चन्द्र, केतु, मंगल, बुध और मिथुन में राहु और शनि। कुल मिलाकर राहु- केतु अक्ष पर 7 ग्रहों का जमावाड़ा हुआ। ठीक 7 माह बाद 6 अगस्त 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध में अमेरिका द्वारा जापान के हिरोशिमा नगर पर परमाणु बम का प्रयोग शुरु किया गया। लाखों की जनहानि हुई, चूंकि 7 ग्रहों के विशेष योग ने इसका संकेत चंद माह पूर्व दे दिया था।18 नवम्बर 1946, भारत की वृषभ लग्न में राहु-केतु अक्ष में 6 ग्रहों का होना और मंगल की वृश्चिक राशि में सूर्य, मंगल, बुध, शुक्र और केतु सहित 5 ग्रहों का इकठ्ठा होना। इस ग्रह स्थिति ने भारत की भावी आजादी 15 अगस्त, 1947 की पृष्ठभूमि रच दी थी। जिसमें भारत और पाकिस्तान के बीच लाखों लोगों की शिफ्टिंग में अपार जनहानि हुई, कत्लेआम हुआ।4 फरवरी, 1962, इस दिन मकर राशि में सूर्य से लेकर शनि तक केतु सहित 8 ग्रह एक साथ थे। आने वाली बहुत बड़ी विध्वंसक घटना का इशारा ग्रह स्थिति कर रही थी। इसका फल अक्टूबर1962 में भारत-चीन के प्रथम युद्ध के रूप में सामने आया। हजारों सैनिक दोनों तरफ से मारे गए। जमीनी विवाद भी हुआ।30 मई 1965, वृषभ राशि मे सूर्य, शुक्र, बृहस्पति, बुध, चन्द्र, राहु सहित ग्रह इक_ा थे। केतु की भी दृष्टि थी। अत: राहु-केतु अक्ष पर 7 ग्रहों का प्रभाव था। इस असाधारण ग्रह स्थिति में मई से सितम्बर, 1965 तक भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ। यह भी विध्वंसक घटना थी।7 अगस्त, 1971 से 15 अक्टूबर, 1971 तक राहु-केतु अक्ष पर 7 ग्रहों का प्रभाव बना रहा। 03 दिसम्बर, 1971 को भारत-पाकिस्तान के युद्ध में बांग्लादेश की मुक्ति हुई और वह स्वतन्त्र राष्ट्र बना।17 जनवरी, 1991 मकर राशि में सूर्य, चन्द्र, शुक्र, शनि और राहु इकट्ठे थे। राहु-केतु अक्ष 7 ग्रहों से प्रभावित थी। इसका परिणाम भारत को 21 मई, 1991 में झेलना पड़ा। तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री राजीव गाँधी आतंकी घटना का शिकार हुए और उनकी हत्या हुई।13 मई, 2002 वृषभ राशि में सूर्य, शुक्र, मंगल, शनि, बुध और राहु इकट्ठे थे। अत: राहु-केतु अक्ष यहाँ भी 7 ग्रहों से प्रभावित थी। चूँकि राहु-केतु आकस्मिकता के संकेतक ग्रह हैं। घटना इतनी तीव्रता लिए होती है कि अनुमान लगाना सम्भव नहीं होता।लेख के विषय को सार रूप में सम्बद्ध करते हुए यह समझ में आता है कि राहु-केतु अक्ष 6 ग्रहों या अधिक ग्रहों से युक्त हो तो विश्व में बड़ी विध्वंसक और आकस्मिक घटना घटित होती है। जिसका प्रभाव अंतर्राष्ट्रीय प्रभाव लिए होता है। जो रत्ती भर भी ज्योतिष नहीं जानता वह उक्त ग्रह स्थिति से समझ सकता है कि – ` ग्रहाधीनं जगत्सर्वं ` (सम्पूर्ण जगत ग्रहों के आधीन है) को ऋषियों ने यूँ ही नहीं कहा।
अब मैं इस लेख की अंतिम ग्रह स्थिति को भी लिख रहा हूँ जो 26 दिसम्बर, 2019 को घटित होने वाली है। इस दिन धनु राशि मे सूर्य, चन्द्र, बुध, बृहस्पति, शनि और केतु एक साथ होंगे। 7 ग्रह इस दिन राहु-केतु अक्ष को प्रभावित कर रहे होंगे। यह ग्रह स्थिति आने वाले कुछ महीनों में घटित होने वाली किसी बड़ी अंतर्राष्ट्रीय घटना की पृष्ठभूमि रच रही है। भारत के संदर्भ में देखें तो धनु राशि स्वतन्त्र भारत की कुण्डली में अष्टम भाव में है और अष्टम भाव गुप्त सन्धियों का भी भाव है। तब तक भारत विश्व स्तर पर बड़ी अंतर्राष्ट्रीय गुप्त सन्धि कर चुका होगा। भारत का धन भाव भी सक्रिय हो रहा रहा है। अत: अर्थव्यवस्था पर केन्द्र सरकार की नीतियों का गहरा प्रभाव पडऩे वाला है। जिसका प्रभाव 2020 में ही प्रत्यक्ष होगा। दिसम्बर से फरवरी तक चूंकि शनि, बृहस्पति और शुक्र एक साथ हैं अत: शनि के मकर में प्रवेश करने तक जाते-जाते जातीय उन्माद जैसी भावनाएं भी भड़केंगी। फरवरी 2020 में शनि का स्वराशि में प्रवेश भारत के शत्रुओं को सबक सिखाने वाला सिद्ध होगा।
अंत में ज्योतिष शास्त्र के आप्त वचन को लिखते हुए अपने इस छोटे से आलेख को पूर्ण कर रहा हूँ।
फलानि ग्रहचारेण सूचयन्ति मनीषिण:
को वक्ता तारतमयस्य तमेकम वेधसम बिना।
अर्थात (ग्रहों का संचार किसी फल को व्यक्त करने वाला होता है, किन्तु वास्तव में क्या होगा? यह निश्चित रूप से परमात्मा के सिवा कोई नहीं जानता) अस्तु ! शुभमस्तु।

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