कलहरुर्चिनिन्द्रालुर्नीच: स्यात्वर्धकीपति:।
सुभग: बन्धुद्वेष्टा न सुखी शशिकुजबुधभार्गवै सहितै।। सारावली …
अर्थात् झगड़े फसाद कराने में आंनद लेने वाला, दिखने में सुन्दर, अत्यन्त निर्दयी, भाई-बन्धुओं के साथ झगड़ा करने वाला, अत्यन्त निद्राहीन।
जिनकी जन्मपत्रिका में शुक्र मंगल और बुध के साथ स्थित हो तो ऐसे योग वाले व्यक्ति अपने वरिष्ठ अधिकारियों से अपना उल्लू सीधा करने में अत्यन्त कुशल होते हैं। अपनी पत्नी को वाहन में बैठाकर घुमाना अत्यन्त पसन्द करते हैं। इस योग की विशेषता यह है कि पत्नी-पति दोनों सुशिक्षित होते हैं व हर कार्य को करने से पहले अत्यन्त गम्भीरता से विचार करते हैं। यदि यह योग सप्तम या दशम में हो तो जीवन में अच्छी व बुरी घटनाएं तेजी से आती हैं। इस युति वाले व्यक्ति आर्थिक व मान-सम्मान के दृष्टिकोण से भाग्यशाली होते हैं। यह दूसरों से काम निकालने में अत्यन्त कुशल होते हैं व किसी भी कार्य की व्यवस्था काफी कुशलता से कर लेते हैं। यदि यह योग मीन राशि में हो तो ऐसे व्यक्ति सिविल इंजीनियर अधिक होते हैं। खाने-पीने के शौकीन, हसमुंख मिजाज के व जीवन को अच्छे तरीके से जीने में यकीन करते हैं।
विद्वान् विमातृपितृक: सद्रूपोधनयुतोऽतिसुभगश्च।
भवतिनरोविगतारिर्बुधगुरुशशिभार्गवै:सहितै:।। सारावली …
अर्थात् विद्वान, माता-पिता का सुख बचपन में ही नहीं रहता, दिखने में सुन्दर, धनवान, अत्यन्त भाग्यवान, शत्रु रहित होते हैं।
जिनकी जन्मपत्रिका में शुक्र चन्द्रमा और बृहस्पति के साथ स्थित हो तो इस योग के बारे में शास्त्रों में अच्छे व बुरे परिणाम दोनों ही कहे गये हैं। यह योग लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, सप्तम, नवम, दशम और लाभ भाव में हो तो शुभ फल मिलते हैं, अन्य स्थानों में अशुभ फल की प्राप्ति होती है। इस योग वाले व्यक्ति जितने विद्वान होते हैं, उतने ही विख्यात व विलासी। यह व्यक्ति जीवन में दो विवाह करते हैं व उच्च शिक्षा प्राप्त करते हैं व पिता के सुख की अपेक्षा माता के अधिक प्रिय होते हैं। पत्नी कुशल व सुन्दर होती है। यह युति वृषभ राशि में होकर सप्तम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति या तो विवाह ही नहीं करेगा व जीवनभर भोग-विलास में ही लगा रहेगा। शास्त्रों में रुचि लेने वाले, कभी-कभी वेदांत पर प्रवचन देने वाले, सबसे हंसी-खुशी रहने वाले, बिना बात के किसी से झगड़ा न करने वाले। अधिक लोगों के विश्वसनीय, कला व गीत-संगीत में रुचि लेने वाले व मधुरवाषी होते हैं।
कृतधर्म कीर्तिरम्यद्रस्तेजस्वी बंधुवल्लभोमतिमान्।
नृपसचिव: प्रवर कवि:शशिबुधजीवार्किभि: सहितै:।। सारावली …
अर्थात् परस्त्री गमन करने वाले, पत्नी का अपमान करने वाले, भाई-बंधु दरिद्र होते हैं, ज्ञानी लोगों का द्वेष करने वाले।
जिनकी जन्मपत्रिका में शुक्र चन्द्रमा और बुध के साथ स्थित हो तो यह योग यदि वृषभ, कन्या, मकर व कुंभ लग्न में हो तो शुभ फल देता है। यह बहुभार्या योग है। जिसके परिणाम में अधिक पत्नियाँ होती हैं परंतु सुख पूर्ण तरह से पत्नी से प्राप्त नहीं हो पाता, हाथ में बड़े-बड़े व्यवसाय व सम्पत्तियाँ होती हैं। ये इनकी व्यवस्था में अपनी बुद्धिकौशल का प्रयोग करने व अन्य लोगों का भी भला करते हैं। ये दूसरों के हस्ताक्षर हुबहू करने में माहिर होते हैं। सरकार से मान-सम्मान प्राप्त करने वाले, समाज सेवक, जिद्दी, अपनी जिद्द के कारण यह कई बार बड़े-बड़े कार्यों को आसानी से पूरा कर लेते हैं व कभी-कभी जिद्द के कारण किए हुए कार्यों पर पानी फेर देते हैं। जीवन में नौकर-चाकर, वाहन सुख, वैभव की कमी नहीं करती परंतु यह योग पाप ग्रहों से दृष्ट हो तो उपरोक्त सुख-सुविधा होते हुए भी नहीं भोग पाते।
स्यान्मल्ल: परपुष्ट: कठिनांगो युद्धदुर्मद: ख्यात:।
रमतेच सारमयैर्बुधारयमभार्गवै: सहितै:।। सारावली …
अर्थात् इनका पालन-पोषण दूसरों के द्वारा होता है। शरीर से अत्यन्त शक्तिशाली होते हैं। जीवन में मान-सम्मान प्राप्त करते हैं। मित्रों में रहना अधिक पसंद करते हैं।
जिनकी जन्मपत्रिका में शुक्र बुध और शनि के साथ स्थित हो तो इस योग वाले व्यक्ति प्रकृति से अत्यधिक प्रेम करते हैं व लाभ भी उठाते हैं। जीवनसाथी का सुख इन्हें जीवन में पूर्ण तरीके से नहीं मिल पाता। यह योग तुला लग्न व कन्या लग्न वाले व्यक्तियों को अत्यंत सुख-सुविधा, जमीन से जुड़े कार्य व कमीशन वाले कार्य में अत्यधिक फायदा दिलाते हैं। खाद-बीज, कीटनाशक दवाईयाँ, सौन्दर्य के सामान इत्यादि वस्तुओं से यह पैसे कमाकर अपना जीवन निर्वाह करते हैं। यदि यह जातक नौकरी करते हैं तो अपने से नीचे कार्य करने वाले व्यक्तियों से सदैव इनकी अनबन बनी रहती है व कार्यक्षेत्र में महिलाएं इनका सहयोग करती हैं।
मेधावी शास्त्ररतोरामासक्तोविधेयभुत्यश्च।
बुधजीवशुक्रसौरैरे: कस्थैतस्तीव्रसंयोगे।। सारावली …
अर्थात् अत्यन्त विलक्षण, धारण शक्तिवाला, असामान्य बुद्धिमान, हमेशा शास्त्रों में रहने वाला, स्वस्त्री में आसक्त, नौकरी करने वाला व दूसरों पर दबाव डालकर कार्य करवाने वाला। अत्यंत धनवान व शीलवान।
जिनकी जन्मपत्रिका में शुक्र बुध और बृहस्पति के साथ स्थित हो तो इस योग वाले व्यक्तियों की शिक्षा पूर्ण नहीं हो पाती, कारण विवाह जल्दी हो जाता है। करते भी हैं तो रुकावटें काफी आती है। ऐसे व्यक्तियों की बुद्धिकौशल, ज्ञानी, विद्वान, वेदांती, धर्म-कर्म में रुचि लेने वाले, आयुर्वेद के अच्छे ज्ञानी, अच्छे लेखक, नाटककार, कवि आदि होते हैं। ऐसे व्यक्तियों में कभी-कभी व्यवहार में शंका देखी जाती है जिस कारण इनका वैवाहिक जीवन ठीक नहीं होता। यह बड़े अधिकारी या नेता बन सकते हैं परंतु अपने कठोर नियमों के कारण यह पूरी सफलता प्राप्त नहीं कर पाते। छल-कपट दूसरों की भलाई के लिए करना उचित समझते हैं व समाज में अपना योगदान समय-समय पर देते रहते हैं। यदि यह योग सप्तम व द्वादश भाव में हो तो ऐसे व्यक्ति अविवाहित भी रहते हैं।
स्त्रीकलहरुचिर्धनमानपूज्यो लोकेच शीलसम्पन्न।
भवतिपुमान्निरुजतनुर्बुंधारिगुरुभार्गवै: सहितै:।। सारावली …
अर्थात् स्त्री के साथ झगडऩे वाला, कलह प्रेमी, धनवान लोगों के पास रहने वाला, परस्त्री की ओर आंख उठाकर भी नहीं देखने वाला। शरीर से अत्यधिक प्रेम करने वाला, बलवान, पुष्ठ होते हैं।
जिनकी जन्मपत्रिका में शुक्र बृहस्पति और मंगल के साथ स्थित हो तो इस योग वाले व्यक्ति अत्यंत बुद्धिमान, विद्वान होते हैं परंतु उच्च शिक्षा में इनकी रुचि नहीं होती, हर विषय में अरुचि लेने वाले, धीमी गति से कार्य करने वाले, कामी, विलासी, भोग की इच्छा इनके मन में बनी रहती है, दो पत्नियों का सुख भोगने वाले, अपने जीवनशैली में दूसरों की दखलअंदाजी बिल्कुल पसंद नहीं, अपनी मर्जी से जीवन जीने वाले, धन कमाने की ललक भरपूर होती है। पैसा खूब कमाते हैं परंतु संग्रह नहीं कर पाते, रहन-सहन, शौक, फैशन आदि पर फिजूल खर्च करने वाले। इन व्यक्तियों के जीवन में अन्न, वस्त्र की कमी नहीं रहती। यह परिवारजनों से दूर रहने वाले, लेखक, कवि, उपन्यासकार, समाचार पत्र के सम्पादक व प्रोफेसर होते हैं। यदि यह युति मकर राशि के दशम भाव में हो तो यह नामी वकील होते हैं व कालाधन कमाने में रुचि रखते हैं।