त्रिंशांश कुण्डली में शनि की आलोचना

स्त्री जातक मुख्यत: त्रिंशांश कुण्डली पर आधारित है। शनि के प्रभाव को स्त्री जातक में निंदित ही माना गया है और वे अच्छे परिणाम देते हुए नहीं पाए गए। लग्न या चन्द्रमा में जो भी बलवान हो तथा मंगल की राशि मेष या वृश्चिक हो तथा जन्म लग्न या चन्द्रमा मंगल के त्रिंशांश में लग्न या चन्द्रमा शनि के त्रिंशांश में हो तो उसे जीवन भर कठिन कार्य करने पड़ते हैं और दास कर्म करना पड़ता है। यदि लग्न या चन्द्रमा शनि के त्रिंशांश में हो तो उसका दूसरा विवाह होता है। यदि जन्म लग्न या चन्द्र लग्न शनि के त्रिंशांश में पड़ जाए तो स्त्री विधवा होती है। सिंह राशि में शनि का त्रिंशांश हो तो स्त्री चरित्रहीन होती है और कुल का नाश करती है और कुल के नियम विरुद्ध कार्य करती है। गुरु की राशि में शनि का त्रिंशांश हो तो कामेच्छा कम हो या कम से ही सन्तुष्ट हो जाए। शनि की राशि हो और शनि का ही त्रिंशांश हो तो वह स्त्री नीच व्यक्तियों के सम्पर्क में आती है।
सप्तम भाव में बुध और शनि की एक साथ उपस्थिति अच्छी नहीं मानी गई। ऐसी स्थितियों में स्त्री का पति नपुंसक होता है। आजकल दैहिक नपुंसकता को दो भागों में देखा जाता है- अंग वैकल्य हो या मनोवैज्ञानिक नपुंसकता हो। दूसरे मामले में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान अत्यधिक सफल है और चिकित्सा से मनोवैज्ञानिक नपुंसकता को दूर किया जा सकता है और यह योग अधिकांशत: निष्फल हो गया है।
परन्तु बुध और शनि का साहचर्य मनोदोर्बल्य, निरास्य जिसे आजकल डिप्रेशन कहते हैं या लक्ष्य या समस्या से पलायन की इच्छा तथा कई तरह की मनोवैज्ञानिक समस्याएँ होती हैं। यह युति संधिवात या संधियों में अस्तिभंग जैसी समस्याएँ भी देती हैं।
सप्तम भाव में शनि की राशि या शनि का अंश हो तो पराशर कहते हैं कि पति वृद्ध और मूर्ख होता है। इन शब्दों के 2 अर्थ है कि पति और पत्नी की आयु में पर्याप्त अन्तर होता है तथा पति के निर्णय पत्नी की इच्छा के विरुद्ध या उसके अनुकूल नहीं होते हैं। यदि पति की कुण्डली में विशेष योग नहीं हो तो उसकी बुद्धिमत्ता का स्तर भी कम होता है।
स्त्री के अष्टम भाव में शनि को अच्छा नहीं माना गया है। उसे दुष्ट स्वभाव वाली, मलीन, ठगने वाला स्वभाव और पति सुख में कमी देखने को मिलती है।
शनावष्टमगे जाता दु:स्वभावा मलिम्लुचा।
प्रवञ्चनपरा नारी भवेत् पतिसुखोज्झिता।
उपरोक्त श्लोक पाराशर का मत है।
सप्तम भाव में मंगल और शनि की युति हो तो स्त्री या तो गर्भ धारण नहीं करें या गर्भपात हो जाए। अष्टम भाव में स्थित शनि की पंचम भाव पर दृष्टि होती है और यदि वहाँ पर शनि की कोई शत्रु राशि हुई तो गर्भपात या संतान का नष्ट होना संभव है। पंचम भाव में शनि के अनुकूल राशि हुई तभी संतान की रक्षा संभव होती है। इस योग में स्त्री की आयु पति से अधिक होती है और वह पति की मृत्यु के बाद भी कई वर्ष तक जीवित रहती है। स्त्री पति से पहले तभी मृत्यु को प्राप्त होगी जब अष्टम भाव में शुभ ग्रह स्थित हों। इस योग में अष्टम भाव में आदर्श स्थिति तभी आती है जब शुभ ग्रहों की संख्या और पाप ग्रहों की संख्या बराबर हों। जैसे दो शुभ ग्रह हों और दो पाप ग्रह। इस योग में स्त्री पति के साथ ही मृत्यु को प्राप्त होती है।
अष्टमे शुभपापौ चेत् स्यातां तुल्यबलौ यदा।
सह भर्ता तदा मृत्युं प्राप्त्वा स्वर्याति निश्चयात्।
जैमिनी ऋषि अष्टम भाव के प्रशंसक हैं, अगर अष्टमेश उच्च राशि में स्थित हों। ऐसी स्थिति में एक नवांश तुल्य वर्षों की आयु बढ़ जाती है। रोगेशे तुङ्गे नवांशवृद्धि:।
कल्याण वर्मा ने अष्टम भाव के शनि की निंदा की है, क्योंकि यह कोढ़, भगन्दर इत्यादि देने वाला होता है और गर्गाचार्य ने भी हैजा, खाँसी जैसे रोग बताये हैं। कश्यप ऋषि कहते हैं कि अष्टम स्थान में शनि यदि मकर या कुम्भ राशि में हों तो किसी न किसी पशु के कारण मृत्यु होती है।
यह देखने में आया है कि शनि अष्टम भाव में स्थित रहकर दशम भाव पर दृष्टिपात करते हैं और वहाँ यदि अनुकूल राशि नहीं हुई तो आजीविका के क्षेत्रों में कठिनाईयाँ झेलनी ही पड़ती है। इसी प्रकार पंचम भाव पद से सम्बन्धित है। अगर अष्टमस्थ शनि की दशम दृष्टि पंचम भाव स्थित शत्रु राशि पर हुई तो पद हानि की संभावनाएँ रहती हैं।
अष्टमस्थ शनि को यदि द्वितीय भाव में अनुकूल राशि मिल जाए तो बहुत धन प्रदायक होती है।
शुक्र के नवांश में शनि और शनि के नवांश में शुक्र हो तो या दोनों की परस्पर दृष्टि हो या वृषभ लग्न या तुला लग्न हो और नवांश लग्न कुम्भ हो तो यह योग कामकला में विकृति देता है। या तो स्त्री कामशान्ति के लिए कृत्रिम उपकरणों का प्रयोग करें या अस्वभाविक क्रियाओं में रूचि ले। समलैंगिक विवाह इस योग में देखने में आता है।

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