यदि छठे भाव का स्वामी शुभ ग्रह होता है तो ऐसा जातक कर्जा अवश्य लेता है। यदि द्वितीय भाव के स्वामी का छठे भाव से षडाष्टक योग बनता है तो जातक कर्जा अवश्य लेता है।यदि लग्नेश कोई पापी ग्रह हो तो व्यक्ति कर्जा अवश्य लेता है।यदि द्वादश भाव का स्वामी अपने भाव से व्यय भाव में अर्थात् एकादश भाव में हो तो व्यक्ति कर्जा लेता है। यदि मंगल अथवा शनि शत्रुक्षेत्री हों या एक-दूसरे को देखते हों तो जातक कर्जा अवश्य लेता है। यदि लग्नेश किसी अन्य अशुभ भाव का स्वामी हो तो जातक कर्जा अवश्य लेता है। यदि शनि का पंचम भाव से संबंध होता है तो जातक कर्जदार बना रहता है। इसमेें एक विशेष बात यह है कि जब भी गोचर में शनि पंचम भाव पर दृष्टि डालेंगे तो जातक उस कार्यकाल में कर्जा अवश्य लेता है। चाहे वह कितना ही धनवान क्यों न हो।
कर्ज कब चुकाना चाहिए –
कर्ज देने की प्रथम किश्त को मंगलवार से शुरु करना चाहिए। जब जातक की राशि का स्वामी राशि से बारहवें घर में हो तो ऋण चुकाना शुरू करना चाहिए। यदि जातक की कुण्डली में छठे भाव का स्वामी बारहवें भाव में हो तो उसकी दशाकाल में कर्ज की प्रथम किश्त देने से जल्दी कर्ज मुक्ति मिलती है।यदि मकान के लिए कर्जा लेना हो तो गोचर में जब नवम अथवा चतुर्थ भाव के स्वामी के साथ चंद्रमा आवे तो लिया हुआ ऋण जल्दी चुक जाता है।पीपल की नित्य प्रति 41 दिन तक आराधना करने से शीघ्र ही कर्ज मुक्ति होती है।घर में पूजा-स्थल पर श्रीयंत्र अथवा वास्तुदोष निवारक यंत्र अथवा मंगल यंत्र रखकर पूर्ण विधि-विधान से ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का नित्य प्रति पाठ करने से कर्ज से मुक्ति शीघ्र होती है।