भारतीय दर्शन से चोरी करके अपने नाम से सिद्धांत गढ़ देना पाश्चात्य वैज्ञानिकों की पुरानी आदत है। हर खगोलीय सिद्धांत उन्होंने उपनिषदों से या वैदिक धारणाओं से चुराया और अपने नाम से गढ़ दिया। भारतीय ऋषियों को तो अपनी शोध के आगे नाम न लिखने की त्याग भावना थी और इन आधुनिक वैज्ञानिकों को चोरी के माल को अपने नाम से कर लेने की आदत है। मैं कुछ ऎसे सिद्धांत, जो भारतीय परम्परा से उ़डा लिए गए उनकी चर्चा करके और उनके उस नए सिद्धांत की चर्चा करूंगा जिसमें उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व को ही नकार दिया है।
1. विश्व को माया माना गया है। वेदांत के अन्तर्गत ईश्वर सृष्टि को प्रकट करने के लिए माया का सहारा लेते हैं। माया को मिथ्या माना गया है।
2. स्टीफन हॉकिंग्स ने ब्लैकहोल का सिद्धांत बताते हुए उसे वैदिक अवधारणाओं की तरफ ले जाने का प्रयास किया।
3. "ए ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम" में उन्होंने स्पष्टत: स्वीकार किया कि बिग बैंग (खगोलीय महाविस्फोट) से ठीक पहले ब्रrााण्डीय रचना जाल की कोई न कोई योजना ईश्वर प्रदत्त थी। वे स्वीकार कर चुके थे कि ब्लैकहोल का सिद्धांत पहले से मौजूद था और 200 वष्ाü के चिंतन के बाद अमेरिकन वैज्ञानिक व्हीलर ने इसे प्रकट किया।
4. इससे पूर्व भी "शून्य" की अवधारणा भारतीय वाङग्मय में उपलब्ध थी जो पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने ग्रहण की।
5. श्रीपति ने कैपलर से सैक़डों वर्ष पूर्व कक्षाओं के दीर्घवृत्त में होने का तर्क प्रस्तुत किया था।
6. ग्रहों की अवधारणा में भारतीयों ने बहुत पहले बता दिया था कि असंख्य मंदाकिनियां खगोल मे उपलब्ध हैं और उनके अलग-अलग ब्रrाा, विष्णु, महेश हैं। गर्ग संहिता और ब्रrावैवर्त पुराण मे इस अवधारणा को खुलकर कहा गया है। अब हम जानते हैं कि असंख्य मंदाकिनियां हैं परन्तु पाश्चात्य वैज्ञानिक इनकी योजक कç़डयों को नहीं खोज पाए हैं। गर्ग संहिता बताती है कि भगवान कृष्ण ही इन सबके महायोजनाकार हैं।
7. भारतीय ज्योतिष मे मंगल को भूमि पुत्र कहा गया है। आधुनिक खगोल शास्त्री आज तक यह सिद्ध नहीं कर पाए हैं कि यह पृथ्वी से कब अलग हुआ।
8. बुध को चन्द्र तनय कहा गया है। ऎसा तब कभी हुआ होगा जब पृथ्वी और सूर्य के बीच मे चन्द्रमा एक ब़डा पिण्ड था और सूर्य के आकर्षण से वह टूट गया और बुध, शुक्र की परिक्रमा को पार करके भी सूर्य का सबसे निकटस्थ ग्रह हो गया। ऎसी घटनाएं होती रहती हैं परन्तु भारतीय ऋषियों को इसका पता था और खगोल वैज्ञानिक इस खोज को उ़डा ले गए। पौराणिक मिथक हैं कि बुध को लेकर चन्द्रमा और बृहस्पति में प्रतिद्वंद्विता थी। शास्त्र बताते हैं कि आधुनिक बुध, बृहस्पति की परिक्रमा में भी जा सकता था। इससे संकेत है कि बृहस्पति और शुक्र के गुरूत्वाकर्षण बल अत्यधिक रहे हैं और संभवत: सूर्य के टूटने की प्रक्रिया में बृहस्पति कदाचित् सबसे ब़डा पिण्ड रहा होगा। सौरमण्डल में आज भी बृहस्पति सबसे ब़डे हैं।
9. राहु-केतु की अवधारणाएं तब दी गई जबकि कोई दूरबीन नहीं थी और ग्रहों को नंगी आंखों से देखा जाना या समझ पाना बहुत मुश्किल था। फिर राहु-केतु तो अदृश्य थे व गणितीय बिन्दु थे। न केवल उनकी स्थिति का पता लगाया गया बल्कि उनकी गति का भी पता लगाया गया। परन्तु यह सिद्धांत पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने उठा लिया।
10. सूर्य के स्पैक्ट्रम को लेकर भी वैदिक ऋषि एकदम स्पष्ट थे और उन्हें सप्ताश्व या सप्तरश्मि बताया गया। द्वादश आदित्य के सिद्धांत के माध्यम से भी उन्होंने सूर्य के विभिन्न वर्गीकरण किए जो कि आगे चलकर राशियों इत्यादि के आधार बने। यह सब किसी न किसी रूप मे वैज्ञानिकों ने स्वीकार किया और अपनी-अपनी शोध में इसे शामिल किया।
11. अखिल ब्रrााण्ड के कई आयामी होने और निरन्तर विस्तार की अवधारणाएं भारतीय दर्शनों मे मिलती हैं। यह बात बाद में पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने अपना ली।
12. स्वयं स्टीफन हॉकिंग्स ने न्यूटन और आइंस्टीन का हवाला देकर यह स्वीकार किया कि ब्रrााण्ड के विस्तार की गति निरन्तर बढ़ रही है तथा किसी भी घटना का भूत और भविष्य दोनों होता है।
13. अनंत गति का सिद्धांत पाश्चात्य वैज्ञानिकों ने बहुत बाद मे स्वीकार किया। वे हाल तक भी सूर्य रश्मियों की गति से अधिक किसी भी अस्तित्व को स्वीकार नहीं कर पा रहे थे। मन की गति पर अब शोध चल रही हैं।
14. जीव या आत्मा या चैतन्य के सिद्धांत को वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित करने में बहुत बाधा थी। चैतन्य या आत्मा नित्य है और सत्य है तथा वह विभिन्न कायाओं में प्रवेश कर सकती है, इसका वैज्ञानिक परीक्षण असंभव था इसलिए वैज्ञानिकों को स्वीकार्य भी नहीं हुआ। आत्मा ईश्वर का ही कोई रूप है, इस महायोजना को वैज्ञानिक एकदम स्वीकार नहीं कर पाए परन्तु जैनेटिक्स को मान्यता देते हुए तथा पूर्व जन्म के कर्म तथा स्मृति जीन के माध्यम से एक जन्म से दूसरे जन्म में प्रवाहित हो जाती है, को स्वीकार करके वैज्ञानिकों ने अप्रत्यक्ष रूप से कर्मफल या पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्वीकार कर लिया था।
15. बौद्ध दर्शन ने और जैन दर्शन ने पुनर्जन्म के सिद्धांत की पुनप्रüतिष्ठा की। बौद्ध दर्शन तो यहां तक मानता है कि प्रति क्षण नया जन्म होता है और प्रत्येक कण अगले क्षण मे गत क्षण की स्मृतियों को अवतरित कर लेता है। यह मत जैनेटिक्स के आधार पर भी खरा उतरता है। पाश्चात्य वैज्ञानिक अप्रत्यक्ष रूप से कुछ बातों को स्वीकार करते हैं। हैं। स्टीफन हॉकिंग्स की नई व्याख्या
स्टीफन हॉकिंग्स ने 1988में लिखी अपनी पुस्तक की मूल अवधारणाओं से उलट नई अवधारणाएं दे दीं। इसमें उन्होंने ईश्वर के अस्तित्व को ही नकार दिया है और यह कहा है कि विश्व की उत्पत्ति और उसके नियम स्वयंचालित हैं और इसके लिए किसी ईश्वर की आवश्यकता नहीं है। हम स्टीफन के कुछ पूर्व में स्वीकार किए गए तथ्यों का उल्लेख यहां करते हैं कि वे कैसे ईश्वरवादी थे और अब पलट गए हैं। ब्लैक होल
स्टीफन हॉकिंग्स ने ब्लैक होल का सिद्धांत यह मानते हुए दिया कि किसी महाविस्फोट के समय एक सूक्ष्म बिन्दु जो अत्यंत उच्चातम तापमान पर था, ने विस्तार पाना शुरू किया। इसके तुरन्त कुछ क्षण बाद ही तापमान करो़डों डिग्री नीचे गिर गया। विश्व के अनन्त विस्तार में तापमान हर क्षण गिरता रहा। उनका मानना है कि जैसे-जैसे भौतिक सृष्टि का विस्तार होता है, केन्द्र बिन्दु का तापमान लगातार गिरता चला जाता है और वह एक अनन्त विस्तार के बाद पुन: महाविस्फोट जैसी स्थिति में आ जाता है। ऎसी कल्पनाओं को देते समय उन्होंने यह माना कि न्यूटन के गति के दूसरे नियम का उल्लंघन कहीं हो सकता है।
इस क्रम में ब्लैक होल अंतरिक्ष में कहीं-कहीं रह गये। यह antimatter या सृष्टि के विपरीत क्रम का एकमात्र केन्द्र बिन्दु नहीं था। ब्लैक होल के बारे में उनकी धारणा यह थी कि इसमें गया हुआ कोई भी प्रकाश का कण अंदर ही अंदर समाहित हो सकता है। ब्लैक होल के अंदर गये हर पदार्थ का उसमें अंदर ही समाहित हो जाना उसकी अंतिम नियति है। बहुत बाद में हॉकिंग्स ने माना कि ब्लैक होल जगत् का अंतिम स्थान नहीं है, बल्कि उसके परे भी अन्य जगत् या किसी जगत् का बाकी भाग हो सकता है। प्रारंभिक धारणा यही थी कि ब्लैक होल में कुछ भी पदार्थ या कण या कोई तरंग जाने के बाद वापस नहीं आ सकती। बाकी भाग हो सकता है। प्रारंभिक धारणा यही थी कि ब्लैक होल में कुछ भी पदार्थ या कण या कोई तरंग जाने के बाद वापस नहीं आ सकती।
महाविस्फोट से पूर्व की स्थिति में अत्यंत उच्च्तम तापमान के कारण कोई भी दो अणु या परमाणु आपस में जु़ड नहीं सकते, वे बहुत तीव्र गति से एक-दूसरे के पास-पास गमन करते रहेंगे। हम जिस भौतिक सृष्टि को देखते हैं उसके निर्माण की एक ही शर्त है कि तापमान कम होता चला जाये। जब बहुत ठण्डा हो जायेगा, तब पदार्थ के दो कण आपस में जु़डने की स्थिति में आ सकते हैं। यही सृष्टि के विस्तार और अस्तित्व का रहस्य है।
भारतीय ऋषि जिस एक सिद्धांत पर कार्य करते रहे थे, वह यही था कि अंतिम सत्य ऊर्जा और गति में निहित है। ऊर्जा भी अंतिम सत्य नहीं हो सकता, क्योंकि ऊर्जा होने या न होने से गति कम या अधिक हो सकती है। इसीलिए भारतीय ऋषियों ने गति को अंतिम स्थान दिया। यह ईश्वर के सबसे निकटतम वाला एक तथ्य है। अगर गति अनन्त हुई तो कोई भी सूक्ष्म पदार्थ ईश्वर के अस्तित्व के लगभग पास तक पहुंच जायेगा। अगर गति अत्यन्त क्षीण हुई तो वह पदार्थ का कण भौतिक सृष्टि में बदल जायेगा। वैदिक दर्शन के हजारों वर्ष बाद न्यूटन व आईन्सटीन व बाद में हॉकिंग ने इन्हीं सब तथ्यों पर अपना मस्तिष्क खपाया और किसी भी नये निष्कर्ष तक नहीं पहुंच सके।
हॉकिंग्स ने यह माना कि जितना ब्लैक होल का mass (आईन्सटीन के E=MC का M) कम होगा, उतना ही अधिक उसका तापमान होगा और उतना ही अधिक तेजी से तापमान का विकिरण होगा, नतीजे के तौर पर ब्लैक होल का mass तेजी से कम होता चला जायेगा। वह यह कल्पना नब्बे के दशक में व वजन लगभग शून्य तक पहुंच जायेगा तो वह अंतिम भयानक महाविस्फोट में बदल जायेगा जोकि करो़डों हाइड्रोजन बमों की ऊर्जा के विकिरण के रूप में प्रकट होगा। हम यह कह सकते हैं कि हॉकिंग्स अपनी कल्पनाओं के जाल में यद्यपि उलझ गये थे, पर वह सृष्टि की उत्पत्ति के रहस्य को तब तक ईश्वर के आधीन ही मान रहे थे। अब वह पुन: मैदान में आये हैं और अपनी नई पुस्तक "द ग्रांड डिजाइन" में उन्होंने अपनी मुख्य धारणाओं को उलटते हुए ईश्वर के अस्तित्व को मानने से इंकार कर दिया है और कहा है कि प्रकृति अपने स्वयं के नियमों से ही संचालित है और उसमें ईश्वर या ऎसी किसी सत्ता का अस्तित्व नजर नहीं आता। कर चुके थे कि जब ब्लैक होल का आयतन व वजन लगभग शून्य तक पहुंच जायेगा तो वह अंतिम भयानक महाविस्फोट में बदल जायेगा जोकि करो़डों हाइड्रोजन बमों की ऊर्जा के विकिरण के रूप में प्रकट होगा। हम यह कह सकते हैं कि हॉकिंग्स अपनी कल्पनाओं के जाल में यद्यपि उलझ गये थे, पर वह सृष्टि की उत्पत्ति के रहस्य को तब तक ईश्वर के आधीन ही मान रहे थे। अब वह पुन: मैदान में आये हैं और अपनी नई पुस्तक "द ग्रांड डिजाइन" में उन्होंने अपनी मुख्य धारणाओं को उलटते हुए ईश्वर के अस्तित्व को मानने से इंकार कर दिया है और कहा है कि प्रकृति अपने स्वयं के नियमों से ही संचालित है और उसमें ईश्वर या ऎसी किसी सत्ता का अस्तित्व नजर नहीं आता।
स्टीफन हॉकिंग्स की किसी भी कल्पना को हम ऎसे ही स्वीकार नहीं कर सकते। दुनिया में कोई भी वैज्ञानिक धरती पर दिखने वाली सामान्य-सी घटनाओं का विश्लेषण नहीं कर सकता। उदाहरण के तौर पर :-